कुलश्रेष्ठ, अमित
(2023)
इबािती सवालों की भाषा का सवाल.
Paathshaala Bhitar aur Bahar, 5 (17).
pp. 7-12.
ISSN 2582-4836
Abstract
गणित के कक्ाकक् में संणरि्ाओं को णसखाने की इतनी जलिबाज़ी होती है णक हम इसके चलते गणित के मूल और मानि जीिन में उसकी भूणमका को बचचों के समक् ही नहीं रख पाते। बचचे गणिती् प्र तीकों और उनके उदिेश्ों को समझें, उनके क्ा णिणभन्न सं्ोजन हो सकते हैं, और िे सं्ोजन िैसे ही क्ों हैं, इस बात को समझें, और सार ही सिालों को पढ़कर समझना भी जानें— इन सभी बातों के णलए कक्ा में जगह ही नहीं बन पाती। असल में, गणिती् संणरि्ाएँ तो सिाल से जिाब तक पहसुँचने के रासते का एक बहसुत छोटा णहससा हैं। ् ह लेख एक इबारती सिाल के ज़णरए बचचों के मन में झाँकने की कोणशश है, और सार ही णशक्क को इबारती सिाल बनाते सम् ध्ान रखने ् ोग् बातों का णपटारा भी। प्र् ास है णक ्े बातें सहजता के सार बचचों को िैणनक जीिन में गणित िेखने के णलए प्रे णरत कर सकें और णिष् के प्र णत उनका जसुडाि भी बना सकें । –सं.
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