कुमार, मनोज
(2023)
कविता की सप्रसंग व्याख्या.
Paathshaala Bhitar aur Bahar, 5 (17).
pp. 30-35.
ISSN 2582-4836
Abstract
यह लेख बताता है कि कविताओं को पढ़ाने का पारम्परिक तरीक़ा उन्हें कवि के जीवन और कविता के समय से बाँध देता है। प्रसंग और सन्दर्भ के साथ कविता को समझने का यह पारम्परिक तरीक़ा विद्यार्थी के कविता से जुड़ने के मौक़े कम कर देता है, और कविता को यांत्रिक तरीक़े से पढ़ने की ओर ले जाता है। लेखक बताते हैं कि कवि कविता के माध्यम 'से' नहीं, बल्कि कविता 'में' कहना चाहता है। विद्यार्थी कविता को अपना बना सकें, अपने देश-काल-परिस्थिति के मुताबिक़ उसे समझ सकें, यह आजादी कविता पढ़ते-पढ़ाते हुए होनी चाहिए। साथ ही लेख यह भी रेखांकित करता है कि कविता के पाठक को 'सहृदय' होना चाहिए। -सं.
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