दक्षिण एशियाई कला में सीखना सिखाना

त्रिपाठी, अवधेश (2023) दक्षिण एशियाई कला में सीखना सिखाना. Pathshala Bheetar Aur Bahar, 6 (18). pp. 81-84. ISSN 2582-483X

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Abstract

सीएन सुब्रह्मण्यम् की किताब दक्षिण एशियाईकला में सीखना सिखाना लोकप्रिय ढंगसे इतिहास लेखन का एक बेहतरीन उदाहरणहै। यह किताब जहाँ किशोरों के लिए अत्यन्तउपयोगी और रोचक पाठ है, वहीं शिक्षा व कला के इतिहास पर काम करने वाले लोगों के लिए ज़रूरी सन्दर्भ पुस्तक भी। सुब्रह्मण्यम् अपने पाठकों को मूर्तिकला और चित्रकला के उन प्राचीन व मध्यकालीन उदाहरणों की यात्रा पर ले जाते हैं, जिनमें शिक्षक और विद्यार्थी दर्ज हैं। यह यात्रा पाठकों के लिए बहुत रोचक है, और लेखक की ज़बरदस्त मेहनत की गवाही भी देती है।यह किताब अब तक प्राप्त दुनिया के प्राचीनतम स्कूलों की चर्चा के साथ शुरू होती है। सुमेरियन सभ्यता के उत्खनन से प्राप्त इन स्कूलों में लिपिक तैयार किए जाते थे, जिन्हें गीली मिट्टी की पट्टियों पर पढ़ना-लिखना सिखाया जाता था। यह लगभग चार हजार साल पुरानी बात है। जाहिर है, ये स्कूल समाज के सारे लोगों को शिक्षा देने के लिए नहीं बनाए गए थे। उस समय तक शिक्षा कुछ ही लोगों के लिए थी। बाकी लोग अपने बुजुर्गों के साथ काम करते हुए सीखते थे। यहाँ से शुरू करके सुब्रह्मण्यम् आधुनिक और सार्वभौम शिक्षा से जुड़ी छवियों तक की यात्रा करते हैं।

Item Type: Articles in APF Magazines
Authors: त्रिपाठी, अवधेश
Document Language:
Language
Hindi
Subjects: Social sciences > Education
Divisions: Azim Premji University > University Publications > Pathshala Bheetar Aur Bahar
Full Text Status: Public
URI: http://publications.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/5589
Publisher URL:

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