गरीबों को मदद से ही सुधरेगी अर्थव्यवस्था तहस-नहस अर्थव्यवस्था और बर्बादी के कगार पर खड़े लोग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

SINGH, BHUPENDRA (2021) गरीबों को मदद से ही सुधरेगी अर्थव्यवस्था तहस-नहस अर्थव्यवस्था और बर्बादी के कगार पर खड़े लोग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. Jagran.

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Abstract

आज देश कोरोना की दूसरी लहर के कारण युद्ध स्तरीय संकट के दौर से गुजर रहा है। इस स्थिति में डूबती सांसों के बीच प्राणों को बचाना ही हमारा एकमात्र ध्येय होना चाहिए, लेकिन इसके पश्चात बचा ली गई और बड़ी संख्या में उजड़ गई जिंदगियों को वापस पटरी पर लाने की अहमियत से भी इन्कार नहीं किया जा सकता। हालांकि कोरोना के आने के पहले भी हमारे हालात कुछ अच्छे नहीं थे। भारतीय अर्थव्यवस्था पिछले कई दशकों की अपनी सबसे लंबी मंदी के दौर से गुजर रही थी। और फिर विरासती समस्याएं तो थी हीं, मसलन रोजगार सृजन की धीमी दर और कामगार तथा कार्यस्थलों की स्थिति में सुधार के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव। सच कहें तो बगैर किसी सामाजिक सुरक्षा के कामकाजी वर्ग का एक बड़ा तबका किसी आकस्मिक संकट का सामना करने की स्थिति में नहीं था। इन सबके बावजूद धीमी रफ्तार से ही सही, देश का आर्थिक विकास तो हो ही रहा था। अर्थशास्त्रियों के आकलन के हिसाब से एक साल में करीब पांच करोड़ लोग न्यूनतम मजदूरी आय सीमा (375 रुपये प्रति दिन) के ऊपर आ जाते, लेकिन इस महामारी ने न केवल ऐसा नहीं होने दिया, बल्कि इस आय सीमा से ऊपर के करोड़ों लोगों को नीचे भी धकेल दिया।

Item Type: Article
Authors: SINGH, BHUPENDRA
Document Language:
Language
Hindi
Subjects: Social sciences > Social problems & services > Other social problems and services
Divisions: Azim Premji University > Research Centre > Centre for Sustainable Employment
Full Text Status: None
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URI: http://publications.azimpremjiuniversity.edu.in/id/eprint/5399
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